1947 में अंग्रेजों ने जब भारत को दो भागों में बांट दिया भारत और पाकिस्तान के रुप में। विश्व के नक्शे पर एक नया देश उभरा पाकिस्तान। अगस्त 1947 में जब पाकिस्तान का गठन हुआ तो इसमें दो मुख्य क्षेत्र शामिल थे – पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। पूर्वी पाकिस्तान में देश की कुल जनसंख्या का 56 प्रतिशत हिस्सा निवास करता था, और यहां के लोग मुख्य रूप से बांग्ला भाषा बोलते थे। यही पूर्वी पाकिस्तान बाद में 1971 में बांग्लादेश बना। बांग्लादेश, जिसे आज दक्षिण एशिया में एक स्वतंत्र और प्रगतिशील देश के रूप में जाना जाता है, इसकी स्थापना का इतिहास संघर्षों से भरा है।
बांग्लादेश के उदय होने से पहले का प्राचीन इतिहास
बांग्लादेश का भूभाग प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक और व्यापारिक केंद्र रहा है। विभाजन के समय, यह क्षेत्र “पूर्वी पाकिस्तान” कहलाता था। 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब पूर्वी बंगाल को पाकिस्तान का हिस्सा बनाया गया। बांग्लादेश गंगा ( पद्मा) और जमुना नदियों के डेल्टा पर स्थित एक छोटा सा देश है बांग्लादेश एक विशिष्ट संस्कृति वाला क्षेत्र रहा है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण, यह लंबे समय तक बाहरी दुनिया से अलग रहा । प्रारंभिक समय में इस क्षेत्र में कई स्वतंत्र रियासतें फली-फूलीं- जिन्हें बंगाल कहा जाता था । मुगलों के शासन के दौरान बिहार और उड़ीसा सहित कई क्षेत्रों को मिलाकर बंगाल नामक एक सूबा का गठन किया गया। बाद में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने इसे बंगाल प्रेसीडेंसी के रूप में संबोधित करने लगे।
पाकिस्तान के बनने के बाद, पूर्वी पाकिस्तान के लोग भेदभाव और आर्थिक असमानता के शिकार होने लगे।
1. भाषा आंदोलन (1952):
पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बांग्ला को सरकारी भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन किया।
पाकिस्तान ने सिर्फ उर्दू को हीं राजकीय भाषा का दर्जा दिया जिससे पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला भाषा बोलने वालों में रोष बढ़ने लगा और संघर्ष करने लगे । 1948 में पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने ढाका दौरे के दौरान कहा था कि ” मैं ये साफ कर देना चाहता हूं कि पाकिस्तान की राजकीय भाषा सिर्फ ऊर्दू हीं होगी, अगर आपको कोई गुमराह करता है तो वह पाकिस्तान का दुश्मन है” इसके बाद 1952 में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बंगला भाषा को सरकारी भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए सरकार से संघर्ष करने लगे।
2. सामाजिक और आर्थिक असमानता:
पाकिस्तान सरकार की नीतियां पूर्वी क्षेत्र के विकास को नजरअंदाज करती थीं। पाकिस्तान के विभाजन के बाद, पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ बढ़ने लगीं। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने उपेक्षा की भावना महसूस की, क्योंकि पश्चिमी पाकिस्तान को अधिक संसाधन और निवेश मुहैया कराया गया।
असमानता के प्रारम्भिक कारक एवं राजकोषीय कारण
- संसाधनों का असमान बंटवारा : सरकारी वित्तपोषण मुख्य रूप से पश्चिमी पाकिस्तान पर केंद्रित था।
- व्यापार नीतियाँ: पूर्वी पाकिस्तान के माल के लिए बाजार में प्रवेश करना चुनौतीपूर्ण था।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व अल्पसंख्यक स्थिति: पूर्वी पाकिस्तान को हमेशा पश्चिमी पाकिस्तान से कमतर हि माना जाता था।
- अपर्याप्त राजनीतिक भागीदारी: निर्णय लेने की प्रक्रिया में पूर्वी पाकिस्तान का प्रभाव बहुत सीमित ही था।
3. राजनीतिक उपेक्षा:
1970 के आम चुनाव पाकिस्तान के इतिहास में एक निर्णायक क्षण थे। इन चुनावों में शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग ने भारी जीत हासिल की, खासकर पूर्वी पाकिस्तान में। अवामी लीग ने 300 में से 167 सीटें हासिल कीं, जो बहुमत से अधिक थी, और इस तरह वह देश में प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई। लेकिन उन्हें सत्ता नहीं दी गई। जिससे पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष और बढ़ गया।
1971 का मुक्ति संग्राम
- 1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम एक महत्वपूर्ण संघर्ष था, जिसने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) से स्वतंत्रता दिलाई। यह संघर्ष सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताओं के चलते हुआ, जिससे पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों में व्यापक असंतोष पैदा हुआ।
मुख्य घटनाएं:
1. पृष्ठभूमि:
1970 के चुनावों में अवामी लीग ने बहुमत से जीत दर्ज की, लेकिन सत्ता हस्तांतरण में बाधाएं आईं।
2. मार्च 1971:
25 मार्च को ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत पाकिस्तानी सेना ने ढाका में हिंसक कार्रवाई की, जिसमें हजारों लोग मारे गए।
3. मुक्ति बाहिनी का गठन:
नागरिकों, सैनिकों और छात्रों के एक समूह ने मुक्ति बाहिनी बनाई, जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ने लगी।
4. भारतीय हस्तक्षेप:
7 दिसंबर 1971 को भारत ने सैन्य हस्तक्षेप किया, जिससे मुक्ति बाहिनी को सहयोग मिला।
5. युद्ध का अंत:
16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया, और बांग्लादेश स्वतंत्र राष्ट्र बना।
भारत का समर्थन: भारत ने बांग्लादेश के शरणार्थियों को संकट के समय में सहारा दिया और दिसंबर 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य हस्तक्षेप किया।16 दिसंबर 1971 इस दिन भारतीय सेना और बांग्लादेशी मुक्ति वाहिनी ने पाकिस्तानी सेना को हराकर बांग्लादेश को स्वतंत्र कराया। यह दिन आज भी विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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बांग्लादेश के उदय के बाद की चुनौतियां
बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद देश को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। आर्थिक संकट गहरा था क्योंकि युद्ध ने बुनियादी ढांचे और उद्योगों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया था। शरणार्थियों की वापसी से संसाधनों पर दबाव बढ़ गया। राजनीतिक अस्थिरता भी एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि सत्ता संघर्ष और प्रशासनिक अनुभव की कमी थी। भुखमरी और गरीबी ने सामाजिक समस्याओं को बढ़ा दिया। इसके अलावा, 1974 का भीषण अकाल स्थिति को और गंभीर बना गया। देश को एक नई राष्ट्रीय पहचान और विकास की राह पर लाने के लिए वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा।
बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद, राजनीतिक स्थिरता एक बड़ी चुनौती बनी रही। 1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या ने देश को गहरे राजनीतिक संकट में डाल दिया। तख्तापलट और सैन्य शासन ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित किया। शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सेवाओं की कमी ने सामाजिक विकास को धीमा किया। इसके बावजूद, देश ने धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय सहायता और आत्मनिर्भरता के प्रयासों से पुनर्निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाए।
आज का बांग्लादेश
आज बांग्लादेश एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था और विकासशील देश का उदाहरण है। इसका वस्त्र उद्योग, विशेष रूप से रेडीमेड गारमेंट्स, दुनिया के सबसे बड़े निर्यात क्षेत्रों में गिना जाता है, जो लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है। GDP वृद्धि दर में निरंतरता ने गरीबी में कमी और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा दिया है। शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से महिला शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया है। स्वास्थ्य क्षेत्र में, टीकाकरण अभियानों ने शिशु और मातृ मृत्यु दर को घटाया है। महिला सशक्तिकरण के प्रयासों के चलते महिलाएं राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी कर रही हैं। आज बांग्लादेश आत्मनिर्भरता और प्रगति की ओर बढ़ रहा है।
निष्कर्ष
बांग्लादेश के निर्माण की कहानी बलिदान और दृढ़ संकल्प की कहानी है। यह इतिहास हमें यह सिखाता है कि एकता और संघर्ष से किसी भी बड़े लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।आज का बांग्लादेश गरीबी से संघर्ष करते हुए एक आत्मनिर्भर और प्रगतिशील राष्ट्र बनने की राह पर अग्रसर है।
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