बिहार में Pradhan Shikshak नियुक्ति प्रक्रिया में बड़ा बदलाव: शिक्षा विभाग ने जारी किया नया आदेश
बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में Pradhan Shikshak पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया अब एक नए मोड़ पर पहुंच गई है। शिक्षा विभाग ने पटना उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश और विधिक सलाह के बाद एक अहम फैसला लेते हुए पहले जारी सभी जिला आवंटन पत्रों को रद्द कर दिया है। इसके साथ ही विभाग ने नए सिरे से जिला आवंटन की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की है। यह आदेश राज्य भर के हजारों अभ्यर्थियों के लिए न केवल राहत की खबर है, बल्कि यह पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी माना जा रहा है।

नियुक्ति प्रक्रिया की शुरुआत: BPSC की सिफारिश पर चयन
बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) द्वारा विज्ञापन संख्या 25/2024 के अंतर्गत प्राथमिक विद्यालयों के लिए Pradhan Shikshak पदों पर भर्ती हेतु आवेदन आमंत्रित किए गए थे। आयोग ने चयन प्रक्रिया पूरी कर योग्य अभ्यर्थियों की सूची शिक्षा विभाग को भेज दी थी। इसके पश्चात विभाग द्वारा नियुक्ति की औपचारिक प्रक्रिया प्रारंभ की गई।
जिला वरीयता के लिए मांगे गए विकल्प
शिक्षा विभाग ने 2 जनवरी 2025 को एक पत्र जारी कर सभी चयनित अभ्यर्थियों से तीन-तीन जिलों के वरीयता विकल्प मांगे। उद्देश्य यह था कि प्रत्येक अभ्यर्थी को उसकी प्राथमिकता के अनुरूप पदस्थापन सुनिश्चित किया जा सके। यह कदम अभ्यर्थियों की संतुष्टि को ध्यान में रखते हुए उठाया गया था।
जिला आवंटन और जारी आदेश
चयनित अभ्यर्थियों द्वारा दिए गए विकल्पों के आधार पर उन्हें संबंधित जिलों का आवंटन कर दिया गया। इस प्रक्रिया के तहत जिला आवंटन पत्र जारी किए गए और नियुक्ति की प्रक्रिया को अगले चरण में ले जाया गया। कई अभ्यर्थियों को उनकी वरीयता के अनुसार जिले मिले, जिससे उन्होंने संतोष व्यक्त किया। लेकिन कुछ Pradhan Shikshak अभ्यर्थी जिला आवंटन की प्रक्रिया से असंतुष्ट थे ।
असंतुष्ट Pradhan Shikshak अभ्यर्थियों की आपत्ति
हालांकि, कुछ अभ्यर्थी जिला आवंटन की प्रक्रिया से असंतुष्ट रहे। उनका मानना था कि आवंटन में पारदर्शिता नहीं बरती गई या उनके विकल्पों की अनदेखी हुई। इसके चलते इन अभ्यर्थियों ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर न्याय की मांग की।
पटना उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप
पटना उच्च न्यायालय ने याचिका संख्या 6614/2025 पर सुनवाई करते हुए 23 अप्रैल 2025 को एक अंतरिम आदेश पारित किया। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए कि 02.01.2025 और 03.04.2025 को जारी पत्रों के आधार पर किसी भी प्रकार की आगे की नियुक्ति या जिला आवंटन प्रक्रिया न की जाए। यह आदेश विभाग की पूरी प्रक्रिया पर तत्काल विराम का संकेत था।
हाई कोर्ट का विभागीय कार्रवाई पर रोक
कोर्ट के इस अंतरिम आदेश के बाद शिक्षा विभाग ने अपने सभी संबंधित आदेशों पर रोक लगा दी। किसी भी नए नियुक्ति पत्र या जिला आवंटन पर कार्यवाही नहीं की गई। विभाग ने आदेशों की समीक्षा करते हुए पूरी प्रक्रिया को कानूनी दायरे में लाने की तैयारी शुरू की।
शिक्षा विभाग ने लिया विधिक सलाह और सरकार की स्थिति स्पष्ट
इस पूरे मामले पर सरकार ने महाधिवक्ता और विधि विभाग से सलाह ली। राय में स्पष्ट किया गया कि सरकार को नीति या नियमों में बदलाव के लिए अदालत से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। यह विषय पूरी तरह से प्रशासनिक निर्णय का हिस्सा है। इसलिए सरकार चाहे तो नई नीति बना सकती है और नई प्रक्रिया आरंभ कर सकती है।
नई प्रक्रिया की घोषणा और पुरानी प्रक्रिया की समाप्ति
शिक्षा विभाग ने इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अब नई जिला आवंटन प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया है। अब पहले से मांगे गए विकल्प और उनके आधार पर जारी किए गए आवंटन पत्र मान्य नहीं होंगे। विभाग ने 3 अप्रैल 2025 को जारी आदेश (पत्रांक-973) को औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही स्पष्ट कर दिया गया है कि पुरानी प्रक्रिया अब पूरी तरह से रद्द मानी जाएगी।
सभी जिलों को दिए गए निर्देश
विभाग ने नए आदेश की प्रति सभी जिलों के शिक्षा पदाधिकारियों, निदेशालय, आईटी प्रबंधकों और अन्य संबंधित अधिकारियों को भेजते हुए निर्देश दिया है कि अब सभी कार्रवाई नए निर्देशों के अनुसार ही की जाए। इसका उद्देश्य प्रक्रिया में एकरूपता और पारदर्शिता बनाए रखना है।
नई प्रक्रिया का क्या होगा प्रभाव?
इस निर्णय से उन अभ्यर्थियों को राहत मिली है जो पहले अपने पसंदीदा जिलों से वंचित रह गए थे। उन्हें अब एक नई उम्मीद मिली है कि शायद इस बार उन्हें उनकी वरीयता के अनुसार पदस्थापन प्राप्त हो सके। वहीं दूसरी ओर, वे अभ्यर्थी जो पहले से संतुष्ट थे और उन्हें मनचाहा जिला मिला था, अब उन्हें दोबारा प्रक्रिया में शामिल होना होगा। हालांकि, यह कदम न्यायसंगत प्रणाली को लागू करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
पारदर्शिता और लचीलेपन का संकेत
यह पूरा घटनाक्रम इस बात को दर्शाता है कि राज्य सरकार और न्यायपालिका, दोनों ही नियुक्तियों में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने को लेकर गंभीर हैं। शिक्षा विभाग का यह फैसला यह साबित करता है कि नीतियों में लचीलापन रखते हुए भी अभ्यर्थियों की भावनाओं और हितों का ध्यान रखा जा सकता है। सरकार ने यह संदेश दिया है कि यदि कोई प्रक्रिया विवादास्पद या अपारदर्शी प्रतीत होती है, तो उसे रद्द कर नई और निष्पक्ष प्रक्रिया शुरू करना ही लोकतांत्रिक और न्यायिक व्यवस्था का हिस्सा है।
बिहार सरकार द्वारा प्रधान शिक्षक पद पर नियुक्ति के लिए नई जिला आवंटन प्रक्रिया शुरू करना न केवल कानूनी प्रक्रिया के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण है, बल्कि यह निर्णय हजारों अभ्यर्थियों के भविष्य को एक नई दिशा भी देगा। यह मामला इस बात का उदाहरण है कि जब न्यायपालिका और कार्यपालिका मिलकर कार्य करें, तो किसी भी विवादास्पद प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से निपटाया जा सकता है।
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