पटना: शिक्षकों के लिए बड़ी राहत की खबर आ रही है। पटना हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में बिहार शिक्षा विभाग के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें 2006 से नियुक्त शिक्षकों को Graduate Grade Trained Teacher का वेतन देने से इनकार किया गया था।
शिक्षकों के अधिकार की जीत
बिहार में वर्षों से चल रही एक वेतन विवाद की गूंज आखिरकार पटना हाई कोर्ट में सुनवाई के बाद न्याय में बदल गई है। यह मामला उन शिक्षकों से जुड़ा है, जिन्हें वर्ष 2006 से नियुक्त किया गया था और जिनके पास स्नातक डिग्री, शिक्षक प्रशिक्षण (DPE/D.El.Ed.) और TET पास करने की योग्यताएं थीं। बावजूद इसके, सरकार उन्हें Basic Grade वेतन पर ही सीमित रखे हुए थी, जबकि नियमावली 2012 के अनुसार वे Graduate Trained Teacher बनने के हकदार थे।
शिक्षक राजेश कुमार पांडेय द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाई कोर्ट ने सरकार द्वारा जारी आदेश संख्या 390 (दिनांक 16.03.2020) को रद्द कर दिया और स्पष्ट निर्देश दिए कि याचिकाकर्ता को 2012 से Graduate Grade वेतन और सभी सेवा लाभ दिए जाएं।
मामले की शुरुआत कैसे हुई
राजेश कुमार पांडेय को वर्ष 2005 में पंचायत शिक्षा मित्र के रूप में नियुक्त किया गया था। वर्ष 2006 में, जब बिहार सरकार ने पंचायत शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नियमावली लागू की, तो उन्हें प्रखंड शिक्षक (Block Teacher) के रूप में समायोजित कर दिया गया। उस समय उनके पास स्नातक की डिग्री थी, और बाद में उन्होंने IGNOU से शिक्षक प्रशिक्षण (DPE) और TET भी पास कर लिया।
जब 2012 में नई नियमावली आई, तो उसमें स्नातक प्रशिक्षित शिक्षकों को अलग वेतनमान और ग्रेड दिया गया। लेकिन सरकार ने 2006 में नियुक्त शिक्षकों को इस श्रेणी में शामिल नहीं किया, और उन्हें पुराने Basic Grade में ही सीमित कर दिया गया।
सरकार ने क्या कहा
सरकार ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि राजेश पांडेय की नियुक्ति 2006 की नियमावली के तहत हुई थी, जिसमें Graduate Grade का प्रावधान नहीं था। इसलिए उन्हें केवल Basic Grade का ही वेतन मिल सकता है। सरकार का यह भी कहना था कि 2012 की नियमावली केवल नए शिक्षकों पर लागू होती है, पुराने शिक्षकों पर नहीं।
याचिकाकर्ता का तर्क
राजेश पांडेय के अधिवक्ताओं ने कोर्ट में यह दलील दी कि याचिकाकर्ता ने 2012 से पहले ही Graduate Trained Teacher बनने की सभी आवश्यक योग्यताएं पूरी कर ली थीं। वे Class VI-VIII में पढ़ा रहे थे और NCTE एवं RTE Act के अनुसार उनकी योग्यता मान्य थी। उन्होंने यह भी कहा कि 2012 के बाद नियुक्त किए गए कई शिक्षक जिन्हें समान योग्यता प्राप्त है, उन्हें Graduate Grade वेतन दिया जा रहा है — तो पुराने शिक्षकों को क्यों नहीं?
उनका मुख्य तर्क यह था कि शिक्षा विभाग द्वारा यह भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है, जो समानता और समान अवसर की गारंटी देता है।
पटना हाई कोर्ट का स्पष्ट निर्णय
माननीय न्यायमूर्ति पूर्णेंदु सिंह की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता की दलीलों को सही ठहराया। उन्होंने माना कि जब किसी शिक्षक के पास 2012 से पहले ही स्नातक, प्रशिक्षण और TET की योग्यता है, और वह Class VI-VIII पढ़ा रहा है, तो उसे Graduate Grade में क्यों नहीं माना जाए?
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि Rule 18 के अंतर्गत 2012 की नियमावली पुराने शिक्षकों पर भी लागू होती है। नियम का यह “Saving Clause” यह सुनिश्चित करता है कि पुराने और नए शिक्षकों के बीच वेतन और ग्रेड को लेकर कोई भेदभाव न हो।
फैसले में क्या कहा गया
कोर्ट ने शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश संख्या-390 को रद्द करते हुए यह आदेश दिया कि राजेश पांडेय को 03 अप्रैल 2012 से Graduate Grade Trained Teacher का दर्जा दिया जाए। साथ ही, उन्हें इस ग्रेड का वेतन, बकाया एरियर, पदोन्नति और अन्य सेवा लाभ दिए जाएं।
इस फैसले का असर कितनों पर पड़ेगा?
इस फैसले का असर अकेले याचिकाकर्ता पर नहीं, बल्कि पूरे बिहार के उन हजारों शिक्षकों पर पड़ेगा जो 2006 से 2012 के बीच नियुक्त हुए थे और जिनके पास Graduate Grade की योग्यता है। अब वे भी इस फैसले का हवाला देकर समान वेतन और सेवा लाभ की मांग कर सकते हैं।
शिक्षा व्यवस्था में नया भरोसा
यह फैसला बिहार के शिक्षकों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यह सिर्फ एक वेतन विवाद नहीं, बल्कि शिक्षकों के आत्मसम्मान और मेहनत की मान्यता है। साथ ही, यह निर्णय साबित करता है कि न्यायपालिका शिक्षक हितों की रक्षा में कितनी संवेदनशील है।
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