खुदनेश्वर धाम: बिहार का समस्तीपुर जिला सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक विविधता का अनोखा संगम है। यहाँ मोरवा प्रखंड के सुल्तानपुर गांव में स्थित खुदनेश्वर धाम-या बाबा खुदनेश्वर महादेव मंदिर-एक ऐसा स्थान है, जहाँ सदियों से शिवलिंग के साथ-साथ एक मुस्लिम महिला की मजार की भी बराबर श्रद्धा से पूजा होती है। यह खुदनेश्वर धाम मंदिर न केवल आध्यात्मिक आस्था का केन्द्र है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता का जीवंत उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।

13वीं सदी की कथा: खुदनी बीबी और प्रकट हुआ शिवलिंग
लोककथाओं के अनुसार आज से लगभग आठ-सौ वर्ष पहले यह इलाका घने जंगलों से घिरा निर्जन स्थान था। पास के गाँव की एक मुस्लिम युवती, खुदनी बीबी, प्रतिदिन गाय चराने यहीं आती थी। मान्यता है कि एक ख़ास स्थल पर उसकी गाय अपने-आप दूध छोड़ देती थी। जिज्ञासावश खुदनी ने ज़मीन कुरेद कर देखा, जहाँ से भगवान शिव स्वयंभू शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए। शिव ने उसे दर्शन देकर कहा कि यदि यह रहस्य किसी से बताया गया तो उसी क्षण मृत्यु हो जाएगी। घर लौटने पर लगातार डाँट झेलती खुदनी ने एक दिन सच्चाई बता दी और वहीँ उसका प्राणांत हो गया।
परिवार और ग्रामीणों ने उसी स्थान पर खुदनी बीबी को दफ़नाया और एक छोटी सी मजार बना दी। कुछ समय बाद मजार के बगल में शिवलिंग को विधिवत स्थापित कर मंदिर का स्वरूप दिया गया। तब से यह स्थान “खुदनेश्वर”- अर्थात खुदनी के ईश्वर-के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

इस्लाम धर्म में किसी महिला की मजार की पूजा की परंपरा नहीं रही है, लेकिन समस्तीपुर के खुदनेश्वर धाम में यह परंपरा वर्षों से जीवित है। यहां एक मुस्लिम महिला, खुदनी बीबी, की मजार शिवलिंग के साथ एक ही परिसर में पूजी जाती है। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि विश्व भर में अपनी अनूठी विरासत और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए जाना जाता है। बाबा खुदनेश्वर और खुदनी बीबी की मजार से जुड़ी कथा न केवल हृदय को छूती है, बल्कि लोगों के मन में एक रोमांच और श्रद्धा भी पैदा करती है। यह देवस्थान वास्तव में दुनिया की उन गिनी-चुनी धरोहरों में से एक है, जहाँ आस्था और एकता एक साथ पूजी जाती हैं।
स्थापत्य और आधुनिक विकास

मूल मंदिर परिसर का वर्तमान स्वरूप 1858 में नरहन एस्टेट ने बनवाया। बीते दो दशकों में स्थानीय भक्तों और बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड की मदद से इसे देवघर-शैली का भव्य लुक मिला है। सफ़ेद-गुलाबी संगमरमर की शिखर वाली गर्भगृह भवन, ताँबे का कलश, और चारों ओर फैला प्रांगण बड़े आयोजनों के लिए पर्याप्त जगह देता है। मंदिर की दक्षिण दिशा में खुदनी बीबी की क़ब्र एक गज़ की दूरी पर हरे कपड़े से ढकी रहती है-यही वह दुर्लभ बिंदु है जहाँ हिंदू और मुस्लिम श्रद्धा शाब्दिक अर्थों में एक-दूसरे से सटी हुई है।
मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु पार्किंग, आरती-दर्शन काउंटर, शुद्ध पेयजल और प्रसाद भंडार की व्यवस्था तो कर दी है, पर पर्यटन विभाग द्वारा प्रस्तावित प्रदेश-स्तरीय विकास योजना अभी भी कागज़ों पर अटकी है। यदि सड़क चौड़ीकरण, संकेत-पट्ट और डिजिटल गाइड जैसी सुविधाएँ जुड़ जाएँ तो देश-विदेश के पर्यटक इस अद्भुत विरासत से और अधिक परिचित हो सकेंगे।
उत्सव और मेलों की रौनक

- सावन का महीना: काँवड़ यात्रा के दौरान रोज़ाना हज़ारों श्रद्धालु हर सोमवार को चमथा से गंगाजल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। मंदिर परिसर में सजे झूले, भोंपू वाले गीत-संगीत और देसी व्यंजन की दुकानों से पूरा इलाका मेले में बदल जाता है।
- महाशिवरात्रि: रात्रि-जागरण, रुद्राभिषेक और भस्म आरती यहाँ की पहचान बन चुके हैं।
- बसंत पंचमी: मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थानीय कलाकारों के लिए बड़ा मंच प्रदान करते हैं।
इन आयोजनों के दौरान मंदिर की चढ़ौती से क्षेत्रीय बेरोज़गारी घटाने के लिए कई स्वयं-सहायता समूह जुड़े हुए हैं—महिलाएँ कढ़ाई-कारी, मिट्टी-शिल्प और प्रसाद पैकेजिंग कर सम्मानजनक आय अर्जित करती हैं।

खुदनेश्वर धाम कैसे पहुँचें?
हवाई मार्ग: पटना का जय प्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई-अड्डा (लगभग 85 किमी) और दरभंगा एयरपोर्ट लगभग 40 किमी नज़दीकी हवाई कनेक्शन है। वहां से टैक्सी या बस से समस्तीपुर पहुँचा जा सकता है।
रेल मार्ग: समस्तीपुर जंक्शन (SPJ) देश के कई मुख्य रेल-रूट पर स्थित है। स्टेशन से खुदनेश्वर धाम 17 किमी दूर है, जहाँ नियमित ऑटो-टैक्सी उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग: पटना- महुआ -समस्तीपुर या पटना -मोकामा-समस्तीपुर राजमार्ग से मोरवा बाज़ार होते हुए सुल्तानपुर मोरवा मंदिर तक पक्की सड़क जाती है। निजी वाहन या बिहार राज्य परिवहन की बसें सुविधाजनक हैं। सावन में अतिरिक्त शटल सेवा चलती है।
स्थानीय स्वाद और ठहरने की व्यवस्था
मोरवा बाज़ार में पारंपरिक लिट्टी-चोखा, चाट छोले और खाजा का स्वाद ज़रूर लें। ठहरने के लिए समस्तीपुर शहर में बजट-होटल व गेस्ट-हाउस मौजूद हैं; सावन और शिवरात्रि पर अग्रिम बुकिंग करना बेहतर रहेगा। मंदिर न्यास सुगम दर्शन हेतु ऑनलाइन स्लॉट बुकिंग प्रणाली भी शुरू करने की योजना में है।
सांस्कृतिक महत्व और भविष्य की राह
खुदनेश्वर धाम धार्मिक पर्यटन से आगे बढ़कर सांप्रदायिक सौहार्द का शैक्षिक केन्द्र बन सकता है। यदि स्कूल-कॉलेजों की भ्रमण यात्राएँ यहाँ नियमित हों, तो नई पीढ़ी धर्मों की एकता को व्यवहारिक रूप से महसूस कर सकती है। बिहार सरकार ने 2008 और 2016 में इसे “राज्य-स्तरीय पर्यटक स्थल” घोषित किया, पर ज़मीनी स्तर पर प्रचार-प्रसार और इंफ़्रास्ट्रक्चर में अभी भी बड़ी गुंजाइश बाकी है।
खुदनेश्वर धाम एक मंदिर, दो आस्थाएँ, एक संदेश
खुदनेश्वर धाम सिर्फ शिव-भक्ति का केन्द्र नहीं, बल्कि यह उस भारत की तसवीर पेश करता है जहाँ धर्म अंतर्क्षेत्र नहीं, सांझा पथ बनाते हैं। यहाँ शिव की आरती और खुदनी बीबी की मजार पर चढ़ती चादर साबित करती है कि आस्था बाँटती नहीं, जोड़ती है। समस्तीपुर की इस अनूठी विरासत की यात्रा न केवल आध्यात्मिक तृप्ति देती है, बल्कि इंसानियत की साझा जड़ों से भी परिचय कराती है। अगली बार बिहार आएँ, तो खुदनेश्वर धाम की इस गंगा-जमुनी तहज़ीब को नज़दीक से जरूर महसूस करें—शायद आपके भीतर का इंसान और व्यापक, और उदार बन उठे।
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