MTNL का बुरा हाल: क्या डूब जाएगी सरकारी टेलीकॉम कंपनी? जानिए पूरा मामला

MTNL

कभी शान थी, अब कर्ज में डूबी! MTNL का 8,585 करोड़ का डिफॉल्ट एमटीएनएल की हालत क्यों हुई इतनी खस्ता? एक नजर मौजूदा हालात और बड़ा सवाल

कभी भारत की सबसे बेहतरीन पब्लिक सेक्टर कंपनियों में शुमार महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL) की हालत अब इतनी खराब हो गई है कि कंपनी ने खुद मान लिया है कि वह अपने लोन की किस्त तक नहीं चुका पा रही। हाल ही में एमटीएनएल ने एक्सचेंज फाइलिंग में माना कि वह करीब ₹8,585 करोड़ का भुगतान करने में नाकाम रही है। कंपनी ने सीधे-सीधे सात सरकारी बैंकों का लोन और उस पर ब्याज देने से हाथ खड़े कर दिए हैं।

डिफॉल्ट का असर और शेयर में गिरावट

एमटीएनएल के इस कबूलनामे के बाद कंपनी के शेयर में जोरदार गिरावट दर्ज की गई। इसका शेयर करीब 5% टूटकर ₹49.59 पर बंद हुआ। कंपनी ने जिन बैंकों का पैसा नहीं चुकाया है उनमें यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक, पंजाब एंड सिंध बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक शामिल हैं। इनमें सबसे बड़ा लोन यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का है, जिसका बकाया लगभग ₹3,733 करोड़ है। इंडियन ओवरसीज बैंक का भी ₹434 करोड़ से ज्यादा फंसा हुआ है।

कब से डिफॉल्ट में है MTNL

कंपनी का कहना है कि यह डिफॉल्ट कोई एक दिन की कहानी नहीं है, बल्कि पिछले साल अगस्त 2024 से लेकर फरवरी 2025 के बीच की किस्तें कंपनी नहीं चुका पाई। इसमें करीब ₹7,794 करोड़ का प्रिंसिपल और ₹790 करोड़ का ब्याज शामिल है। इसका मतलब साफ है कि एमटीएनएल का धंधा ठप होता जा रहा है और कंपनी नया पैसा जुटाने में भी नाकाम साबित हो रही है।

कर्ज का पहाड़ और सरकारी गारंटी

MTNL पर फिलहाल कुल ₹34,484 करोड़ का कर्ज हो चुका है। इसमें सिर्फ बैंकों का कर्ज नहीं है बल्कि सरकार की गारंटी वाले बॉन्ड भी शामिल हैं। ये बॉन्ड करीब ₹2,471 करोड़ के हैं, जिनके लिए एमटीएनएल ने बाजार से पैसा उठाया था। इसके अलावा कंपनी ने इन बॉन्ड्स पर ब्याज चुकाने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम से भी ₹1,828 करोड़ उधार लिया था। अब ये रकम भी उसी कर्ज के पहाड़ में शामिल हो गई है।

क्यों पिछड़ रही है MTNL?

दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में MTNL का बिजनेस था, लेकिन प्राइवेट कंपनियों के मुकाबले यह कमजोर पड़ गई। आज जिओ और एयरटेल जैसे बड़े खिलाड़ी इन्हीं शहरों पर फोकस कर रहे हैं, जिससे एमटीएनएल की कमाई और ग्राहक दोनों तेजी से घटे हैं। सरकार भले ही मदद करती रही है, लेकिन लगातार बढ़ते कर्ज ने कंपनी की रीढ़ तोड़ दी है।

बीएसएनएल और MTNL का मर्जर ही एकमात्र विकल्प?

सरकार कई बार कह चुकी है कि एमटीएनएल को बीएसएनएल में मर्ज किया जाएगा। बीएसएनएल, जो कि भारत संचार निगम लिमिटेड के नाम से देशभर में सेवाएं देता है, बीते कुछ वक्त में मुनाफा कमाने की तरफ बढ़ा है। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि बीएसएनएल के साथ मर्जर से एमटीएनएल को भी सहारा मिल सकता है। हालांकि अब तक यह सिर्फ चर्चा तक सीमित है।

क्या प्राइवेट सेक्टर के हाथों गिरवी हो जाएंगे सरकारी एसेट्स?

सरकार ने यह भी साफ किया है कि MTNL और बीएसएनएल के एसेट्स किसी प्राइवेट कंपनी को नीलामी में नहीं दिए जाएंगे। अगर जरूरत पड़ी तो इन्हें सिर्फ सरकारी डिपार्टमेंट्स को ही ट्रांसफर किया जाएगा और वह भी उचित वैल्यूएशन पर। फिर भी सवाल तो यही है कि इतने बड़े नेटवर्क और इंफ्रास्ट्रक्चर के बावजूद इन कंपनियों को ताकतवर क्यों नहीं बनाया जा रहा?

क्या टेलीकॉम सेक्टर में डुओपोली खतरा नहीं?

आज भारत का टेलीकॉम सेक्टर लगभग दो कंपनियों – जिओ और एयरटेल – के कब्जे में है। तीसरे खिलाड़ी वोडाफोन आइडिया को सरकार ने अब तक कई बार बचाया है ताकि बाजार में कॉम्पिटीशन बना रहे। लेकिन सवाल यह भी है कि जब प्राइवेट कंपनियों को लाइफलाइन दी जा सकती है तो अपनी सरकारी कंपनियों को क्यों नहीं? ट्रेड यूनियन से लेकर ग्राहकों तक सबका यही सवाल है कि अगर कुछ कंपनियां मिलकर कार्टेल बना लेंगी तो नुकसान आखिरकार आम ग्राहकों को ही होगा।

आगे क्या रास्ता है?

टेलीकॉम इंडस्ट्री के इतिहास पर नजर डालें तो प्राइवेट कंपनियां सरकारी कंपनियों की कीमत पर ही खड़ी हुईं। आज भी अगर सरकार अपनी ही कंपनियों को बचाकर मजबूत कर दे तो बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रह सकती है। वरना आने वाले दिनों में सिर्फ दो-तीन कंपनियां मिलकर रेट तय करेंगी और आम आदमी को महंगे कॉल और डेटा पैक खरीदने पर मजबूर होना पड़ेगा।

अब देखना होगा कि सरकार एमटीएनएल और बीएसएनएल को नया जीवन देती है या फिर टेलीकॉम सेक्टर पूरी तरह से दो-तीन निजी कंपनियों के हवाले कर देती है।

Also Read:

Paint industry पेंट सेक्टर का सुपरस्टार कौन? एशियन पेंट्स का पतन या बिरला ओपस का उदय?

सुकन्या समृद्धि योजना (SSY) बालिकाओं के लिए एक सुरक्षित और फायदेमंद बचत योजना