Panchayat season 4: 24 जून 2025 को प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुए Panchayat season 4 का इंतज़ार जितना बेसब्री से हुआ, उसका असर उतना गहरा नहीं बैठ पाया। गांव फुलेरा की इस नई राजनीतिक पटकथा में कुछ नए रंग तो थे – महिलाओं की निर्णायक भागीदारी, अभिषेक की प्रोफेशनल ग्रोथ और चुनावी चहल-पहल – लेकिन इन सबके बीच वो आत्मीय गंध जैसे उड़ सी गई, जो पहले तीन सीजन की पहचान थी।
जब फुलेरा बना चुनावी रणभूमि, और महिलाएं बनीं निर्णायक आवाज़

इस बार कहानी केंद्रित रही मंजू देवी बनाम क्रांति देवी के चुनावी मुकाबले पर। दिलचस्प ये रहा कि महिलाएं सिर्फ़ चुनावी मोहरे नहीं, बल्कि असली निर्णयकर्ता बनीं। सामाजिक बदलाव की झलक दिखी, लेकिन वो व्यंग्यात्मक मिठास, वो सहज हास्य जो ‘पंचायत’ को खास बनाता था – कहीं छूटता गया।
अभिषेक त्रिपाठी, जिसने CAT में 97 पर्सेंटाइल हासिल किया, अपनी आकांक्षाओं और रिश्तों के बीच जूझते दिखे। रिंकी और अभिषेक की केमिस्ट्री अब एक रिश्ते की शक्ल लेने लगी है, लेकिन वो मासूम जिद, जो इस रिश्ते को पहले दिलचस्प बनाती थी, अब थोड़ी गंभीर और नियंत्रित लगती है।
कलाकारों ने की पूरी मेहनत, पर कहानी ने साथ नहीं दिया
जितेंद्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, फैसल मलिक, चंदन रॉय – हर अभिनेता ने अपने किरदार में जान फूंकी। खासकर प्रह्लाद चा की भूमिका में फैसल मलिक, जिन्होंने एक ऐसे किरदार को निभाया जो अंदर से टूटा है, लेकिन बाहर से संयमित – वो सीजन के सबसे भावुक पलों में चमकते हैं।
लेकिन यह भी सच है कि कलाकारों की यह मेहनत उस वजूद को नहीं लौटा सकी, जो ‘पंचायत’ को एक आईना बनाता था – गांव, संबंधों और मानवीय त्रासदियों का।
दर्शकों की प्रतिक्रिया: दिल और दिमाग दोनों में बंटी राय
इस सीजन को लेकर दर्शकों के दो धड़े बन गए हैं:
- पहला तबका, जिसने भावनात्मक गहराई, महिला पात्रों की भूमिका, और अभिषेक के आत्मसंघर्ष को सराहा। उनके लिए यह सीजन सामाजिक बदलाव का प्रतीक बना।
- वहीं दूसरा तबका इसे धीमा, संवेदनात्मक रूप से कमजोर और हास्यविहीन मानता है। उनके लिए ‘पंचायत’ का असली जादू – चौकड़ी की दोस्ती, रोजमर्रा की हास्यप्रद स्थितियां और हल्के-फुल्के रिश्तों की गरमी – अब सिर्फ बीते कल की बात लगती है।
Panchayat season 4 – बदलाव की कोशिश, लेकिन स्वाद कुछ अधूरा
Panchayat season 4 एक प्रयास है – बदलाव का, महिला सशक्तिकरण का, और एक पात्र की महत्वाकांक्षाओं के विस्तार का। लेकिन इस प्रयास में वो आत्मीय जुड़ाव, जो दर्शकों को ‘पंचायत’ से बांधता था, कमजोर पड़ गया है। शायद इसकी वजह ये भी है कि सीजन को पांचवें भाग की तैयारी मानकर ही पेश किया गया हो, न कि दर्शकों की उम्मीदों की परिपूर्ति के रूप में।
अगर आपने पहले तीन सीजन में फुलेरा को एक किरदार की तरह जिया है, तो चौथा सीजन देखना ज़रूरी तो है, लेकिन शायद उतना आनंददायक नहीं जितनी उम्मीद थी।
पर हां, प्रह्लाद की चुप्पी, अभिषेक की आँखों में उलझन, और फुलेरा की पगडंडियां अब भी कुछ देर के लिए रोक लेती हैं।
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