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वट सावित्री व्रत 2025: पति की लंबी उम्र के लिए समर्पित एक श्रद्धा और प्रेम का पर्व

वट सावित्री

एक सुहागिन के लिए, वट सावित्री व्रत केवल उपवास नहीं, बल्कि अपने पति के स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना का एक सशक्त संकल्प होता है। यह व्रत हमारी आस्था, प्रेम और नारी शक्ति का प्रतीक है—जिसकी प्रेरणा हैं देवी सावित्री, जिन्होंने यमराज से अपने पति सत्यवान का जीवन पुनः प्राप्त किया।

2025 में व्रत की तारीखें

भारत के विभिन्न हिस्सों में यह व्रत अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है, क्योंकि यहां दो प्रमुख पंचांग प्रचलित हैं:

इन दोनों तिथियों में लगभग 15 दिन का अंतर होता है, लेकिन भाव एक ही होता है—पति की लंबी उम्र के लिए नारी का पूर्ण समर्पण।

व्रत की पौराणिक कथा: सावित्री और सत्यवान की अमर गाथा

वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा अत्यंत प्रेरणादायक और भावनात्मक है। यह कथा महाभारत के वनपर्व में वर्णित है और एक आदर्श पत्नी सावित्री के अद्वितीय प्रेम, तप और बुद्धिमत्ता की गाथा कहती है।

राजा अश्वपति, जो मद्रदेश के राजा थे, निःसंतान थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए वर्षों तक तप किया और देवी सावित्री की कृपा से एक दिव्य कन्या की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। वह अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और गुणों की खान थी। जब विवाह योग्य हुई, तो पिता ने उसे स्वयं वर चुनने की आज्ञा दी।

सावित्री ने वन में तपस्वी जीवन जी रहे राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपना जीवनसाथी चुना। सत्यवान धर्मपरायण, साहसी और विनम्र थे, लेकिन उनकी एक बड़ी त्रासदी यह थी कि वे अल्पायु थे—सिर्फ एक वर्ष का जीवन शेष था। यह जानकर भी सावित्री ने उनसे विवाह किया, यह कहते हुए कि “मैंने एक बार जिसे पति मान लिया, वही मेरे लिए अंतिम है।”

विवाह के बाद सावित्री ने पति के जीवन की अंतिम तिथि की गणना कर कठोर व्रत और उपवास प्रारंभ किया। जिस दिन सत्यवान की मृत्यु का दिन आया, उस दिन वह उनके साथ वन गईं। जब सत्यवान लकड़ियां काटते-काटते अचेत हो गए और उनकी आत्मा लेने यमराज आए, तो सावित्री उनके पीछे-पीछे चल पड़ी।

यमराज ने समझाया कि यह नियम के विरुद्ध है, परंतु सावित्री ने अपने विवेक, प्रेम और भक्ति से यमराज को प्रभावित किया। उसने तीन वर माँगे—अपने ससुर का राज्य लौटाना, सौ पुत्रों की प्राप्ति और पति के साथ जीवनभर का साथ। यमराज ने सहर्ष वरदान दिए और इस प्रकार सत्यवान को जीवनदान मिला।

यह वट सावित्री कथा नारी शक्ति, अडिग संकल्प, प्रेम और बुद्धिमत्ता की प्रतीक है। सावित्री ने यह सिद्ध कर दिया कि एक सच्चे प्रेम और दृढ़ निश्चय से मृत्यु जैसे अमोघ सत्य को भी बदला जा सकता है। वट सावित्री व्रत इसी अमर गाथा की स्मृति में मनाया जाता है, जहाँ हर सुहागिन नारी सावित्री की भाँति अपने पति के लिए समर्पित होती है।

सावित्री एक आदर्श पत्नी थीं। जब उनके पति सत्यवान को अल्पायु मृत्यु का श्राप मिला, तब सावित्री ने यमराज का सामना किया। अपने धैर्य, चतुराई और अटूट प्रेम से उन्होंने यमराज को प्रभावित किया और अपने पति का जीवन पुनः पा लिया।

वट सावित्री कथा आज भी हमें सिखाती है कि एक नारी की प्रार्थना और प्रेम में इतनी शक्ति होती है कि वह मृत्यु को भी पीछे छोड़ सकती है।

वट सावित्री व्रत की विधि और महत्व

इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं, वट (बड़) वृक्ष की पूजा करती हैं, उसके चारों ओर कच्चा सूत लपेटती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। यह व्रत अखंड सुहाग और पति के दीर्घायु जीवन का प्रतीक है।

नारी शक्ति और श्रद्धा का पर्व

वट सावित्री व्रत केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि हमारे रिश्तों की गहराई, समर्पण और विश्वास का उत्सव है। चाहे अमावस्या हो या पूर्णिमा, यह व्रत हर सुहागिन के लिए एक नई ऊर्जा और आशीर्वाद लेकर आता है।

2025 में जब आप व्रत करें, तो सावित्री जैसी आस्था और प्रेम से इसे निभाएं। ईश्वर आपके जीवनसाथी को लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-शांति प्रदान करें—यही हमारी सच्ची प्रार्थना है।

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